आयुर्वेद दिवस 2025: लोगों और ग्रह के लिए आयुर्वेद
भारत सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण घोषणा की है कि अब से आयुर्वेद दिवस हर वर्ष 23 सितंबर को मनाया जाएगा। यह बदलाव 2025 से प्रभावी होगा और इसके साथ ही यह दिवस पहले की परंपरा, यानी धन्वंतरि जयंती पर मनाए जाने के स्थान पर एक स्थायी तिथि पर आ जाएगा। इस वर्ष का विषय भी अत्यंत सार्थक रखा गया है – “लोगों और ग्रह के लिए आयुर्वेद” (Ayurveda for People and Planet)।
यह विषय न केवल मानव स्वास्थ्य और दीर्घायु से जुड़ा है, बल्कि पूरे पर्यावरण, पारिस्थितिकी और पृथ्वी की स्थिरता के महत्व को भी उजागर करता है।

आयुर्वेद दिवस की शुरुआत
आयुर्वेद दिवस की शुरुआत वर्ष 2016 में भारत सरकार द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य था कि आम नागरिक आयुर्वेद के महत्व को समझें, उसे अपनी जीवनशैली में अपनाएँ और विश्व पटल पर भारत की इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति को स्थापित किया जा सके।
शुरुआत से अब तक आयुर्वेद दिवस धनतेरस या धन्वंतरि जयंती के दिन मनाया जाता रहा। यह तिथि चंद्र कैलेंडर (Hindu Lunar Calendar) पर आधारित होती थी, इसलिए हर साल अलग-अलग तारीख पर आती थी। यही कारण है कि इसके प्रचार और वैश्विक स्तर पर पहचान को लेकर कुछ कठिनाइयाँ उत्पन्न होती थीं।
अब इसे स्थायी रूप से 23 सितंबर को मनाए जाने का निर्णय लिया गया है, जिससे इस दिन का महत्व और व्यापक होगा।
क्यों चुनी गई 23 सितंबर की तिथि?
23 सितंबर की तिथि को चुनने के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण माने जाते हैं –
1. स्थिरता और वैश्विक पहचान – अब हर वर्ष एक निश्चित दिन पर इसका आयोजन होगा, जिससे प्रचार-प्रसार और जनभागीदारी आसान होगी।
2. संक्रांति का समय – यह समय ऋतु परिवर्तन का होता है, जब आयुर्वेदिक दृष्टि से शरीर और प्रकृति दोनों में संतुलन की आवश्यकता होती है।
3. आधुनिक दृष्टिकोण से उपयुक्त समय – सितंबर का महीना स्वास्थ्य-जागरूकता अभियानों के लिए विश्व स्तर पर उपयुक्त माना जाता है।
आयुर्वेद: एक परिचय
आयुर्वेद संस्कृत शब्द है, जिसमें "आयु" का अर्थ है जीवन और "वेद" का अर्थ है ज्ञान। यानी आयुर्वेद का सीधा अर्थ है – “जीवन का विज्ञान”।
यह केवल उपचार प्रणाली नहीं, बल्कि जीवन जीने की संपूर्ण पद्धति है। इसमें आहार, दिनचर्या, योग, ध्यान, पंचकर्म और औषधियों के माध्यम से शरीर, मन और आत्मा का संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया जाता है
आयुर्वेद दिवस 2025 का विषय: "लोगों और ग्रह के लिए आयुर्वेद"
इस वर्ष का विषय आयुर्वेद की व्यापक प्रासंगिकता को दर्शाता है। इसके अंतर्गत दो मुख्य पहलू सामने आते हैं –
1. लोगों के लिए आयुर्वेद
प्राकृतिक और सस्ती चिकित्सा प्रणाली
जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों (डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, मोटापा आदि) का समाधान
मानसिक स्वास्थ्य, योग और ध्यान से जुड़े उपाय
रोग से पहले रोकथाम (Preventive Healthcare)
2. ग्रह (पर्यावरण) के लिए आयुर्वेद
जड़ी-बूटियों और पौधों पर आधारित चिकित्सा से प्रदूषण और रसायनों का कम उपयोग
जैव विविधता और पारंपरिक खेती को बढ़ावा
सतत विकास (Sustainable Development) की दिशा में योगदान
धन्वंतरि और आयुर्वेद
आयुर्वेद का संबंध भगवान धन्वंतरि से है, जिन्हें “आयुर्वेद का जनक” कहा जाता है।
धनतेरस के दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे। तभी से माना जाता है कि आयुर्वेद दिव्य विज्ञान है, जो मानवता को दीर्घायु और स्वास्थ्य प्रदान करता है।
आयुर्वेद दिवस का महत्व
1. प्राचीन ज्ञान का संरक्षण – यह दिवस लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ता है।
2. विश्व स्तर पर पहचान – योग की तरह आयुर्वेद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो सकेगा।
3. आधुनिक चिकित्सा के पूरक – आयुर्वेद आधुनिक चिकित्सा के साथ मिलकर बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था बना सकता है।
4. स्वास्थ्य-जागरूकता अभियान – यह दिन लोगों को प्राकृतिक जीवनशैली अपनाने और दवाइयों पर निर्भरता कम करने की प्रेरणा देता है।
आयुर्वेद और आधुनिक समय में इसकी प्रासंगिकता
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग तरह-तरह की बीमारियों से जूझ रहे हैं। ऐसी स्थिति में आयुर्वेद न केवल उपचार बल्कि “रोकथाम और जीवनशैली सुधार” के रूप में सबसे कारगर साबित हो रहा है।
आहार-विहार का महत्व – आयुर्वेद हर व्यक्ति की प्रकृति (वात, पित्त, कफ) के अनुसार भोजन और जीवनशैली की सलाह देता है।
पंचकर्म चिकित्सा –
शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त कर उसे नई ऊर्जा प्रदान करती है।
हर्बल औषधियाँ – साइड इफेक्ट्स रहित प्राकृतिक दवाएँ।
मानसिक शांति – ध्यान, प्राणायाम और योग के माध्यम से तनाव मुक्त जीवन।
आयुर्वेद और पर्यावरणीय संतुलन
आज विश्वभर में प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और संसाधनों की कमी बड़ी समस्या बन चुकी है। आयुर्वेद प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का संदेश देता है।
पौधों और औषधियों की खेती जैव विविधता को सुरक्षित करती है।
रसायनों और कृत्रिम तत्वों का न्यूनतम उपयोग होता है।
पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने में योगदान देता है।
“लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु” की भावना धरती और समस्त प्राणियों के कल्याण की ओर प्रेरित करती है।
2016 से अब तक आयुर्वेद दिवस के विषय
1. 2016 – आयुर्वेद और युवा
2. 2017 – आयुर्वेद और महिला स्वास्थ्य
3. 2018 – आयुर्वेद और सार्वजनिक स्वास्थ्य
5. 2020 – आयुर्वेद और आत्मनिर्भर भारत
6. 2021 – आयुर्वेद और पोषण
7. 2022 – आयुर्वेद और महामारी से सुरक्षा
8. 2023 – आयुर्वेद और मिलेनियल स्वास्थ्य
9. 2024 – आयुर्वेद और जीवनशैली रोग
10. 2025 – लोगों और ग्रह के लिए आयुर्वेद
निष्कर्ष
आयुर्वेद दिवस 2025 का विषय हमें यह याद दिलाता है कि स्वास्थ्य केवल शरीर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे वातावरण और ग्रह से भी जुड़ा हुआ है। यदि मनुष्य प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर चलता है, तभी वह दीर्घायु और सुखी जीवन पा सकता है।
भारत सरकार द्वारा 23 सितंबर को स्थायी रूप से आयुर्वेद दिवस घोषित करना एक ऐतिहासिक कदम है, जिससे आने वाली पीढ़ियों को इस दिव्य ज्ञान का लाभ मिलेगा। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम आयुर्वेद को केवल पुस्तकों और इतिहास तक सीमित न रखें, बल्कि उसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं।




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